September 20, 2025

JMG News

No.1 news portal of Uttarakhand

शीत ऋतु में नवजात शिशु का रखें विशेष खयाल , मौसम की मार से हाईपोथर्मिया की चपेट में आ रहे बच्चे

1 min read

 

अत्यधिक ठंड, कोहरा और धूप नहीं निकलने से बढ़ रही परेशानी 

एम्स ऋषिकेश ने जारी की हेल्थ एडवाईजरी  

 

एम्स ऋषिकेश

25 जनवरी, 24

 

नवजात बच्चे को स्वास्थ्य संबन्धी तमाम खतरों से बचाना एक बड़ी चुनौती है। कोहरे के कारण लगातार पड़ रही ठंड में नवजात की सही ढंग से देखभाल करना बहुत जरूरी है। इस सम्बन्ध में एम्स ऋषिकेश ने हेल्थ एडवाईजरी जारी की है।

जन्म से पहले बच्चा मां के गर्भ में एक सुरक्षित और आरामदायक कवच में रहता है। जन्म लेने के बाद उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती बाहर के वातावरण से सामंजस्य बैठाने की होती है। इसलिए जन्म से कम से कम 6 माह तक बच्चों को मौसम की मार से सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है। यहां नवजात शिशु से तात्पर्य जन्म से 28 दिन की उम्र के शिशु से है। विशेषज्ञों के अनुसार उत्तराखण्ड में शिशु मृत्यु दर 34 प्रतिशत से अधिक है।

आसय यह कि जन्म लेने वाले प्रति 1000 बच्चों में से 34 शिशुओं की विभिन्न कारणों के चलते मृत्यु हो जाती है। इन कारणों में से एक प्रमुख कारण यह है कि बीमार शिशु इलाज के लिए समय रहते अस्पताल नहीं पहुंच पाता है।

 

एम्स में नियोनेेटोलाॅजी विभाग की हेड प्रोफेसर श्रीपर्णा बासु ने इस बारे मे बताया कि घने कोहरे के कारण अत्यधिक ठंड वाले इस मौसम मे सबसे अधिक मामले हाईपोथर्मिया बीमारी से सम्बन्धित हैं। एम्स की नियोनेटाॅलाजी विभाग की ओपीडी में 60 प्रतिशत शिकायत बच्चों को ठंड लगने से उत्पन्न विभिन्न समस्याओं से सम्बन्धित आ रही है। उन्होंने बताया कि हाईपोथर्मिया को सामान्य भाषा में बच्चे का ठंडा पड़ जाना कहते हैं। खासतौर से ढाई किलो वजन से कम वजन वाले नवजात शिशु इस बीमारी से सर्वाधिक ग्रसित होते हैं।

विभाग की एसोसिएट प्रो. डाॅक्टर पूनम सिंह ने बताया कि जब शिशु के शरीर का तापमान 36.5 डिग्री सेल्सियस से कम होने लगता है तो वह हाईपोथर्मिया कहलाता है। हाईपोथर्मिया की शिकायत पर बच्चा सुस्त होकर दूध पीना बंद कर देता है और धीरे-धीरे उसके खून में शर्करा की कमी होने से बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है। उन्होंने बताया कि शिशु का सुस्त हो जाना, उसके पैर और पेट ठंडे पड़ना तथा दूध पीना बंद कर देना इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं।

 

क्या करें-

1- नवजात को हाईपोथर्मिया से बचाने का प्रयास जन्म से पहले ही शुरू हो जाता है। यदि किसी स्वास्थ्य केन्द्र में नवजात की देखरेख की व्यवस्था नहीं है तो गर्भवती मां को सुविधा युक्त अस्पताल में ले जाकर ही डिलीवरी कराएं।

2- बच्चे को जन्म के पहले 1 घन्टे में नहीं नहलाएं।

3- बच्चे का बदन गुनगुने पानी से गीले कपड़े से पोंछें।

4- सर्दी के मौसम में बंद कमरे में थोड़ी समय के लिए नहलाएं। इसके पश्चात सिर और बदन पोंछकर न्यूनतम 3 सतह मे कपड़े पहनाएं और टोपी, मौजे और दस्ताने जरूर पहनाएं और गर्म शाॅल में ढककर लपेटें।

5- ध्यान रखें कि शिशु गीले कपड़े में न रहे।

6- कोहरे की ठंडी हवा शिशु को नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए बच्चे को बंद खिड़की से आ रही धूप में रखें।

7- बार-बार अपना स्तनपान कराएं ताकि बच्चे को खुराक और गर्माइश दोनों ही लाभ मिल सके।

8- कंगारू मातृ देखरेख का तरीका अपनाएं। यह विधि शिशु के शरीर का तापमान संतुलित बनाए रखने का सबसे अच्छी विधि है। इस विधि में मां अपने बच्चे को दैनिक तौर से 8-10 घन्टे छाती से लगाकर दूध पिलाते हुए शिशु के शरीर को गर्माहट दे सकती है।

9- अस्पताल अथवा घर से बाहर जाते हुए प्रत्येक मां अपने शिशु को कंगारू मातृ देखरेख विधि से बंद वाहन से ही ले जाएं। खुले वाहन अथवा दुपहिया वाहन में ले जाने से बच्चे को ठंड से नुकसान हो सकता है।

 

क्या न करें-

1- लक्षण नजर आने पर बच्चे को अस्पताल ले जाने मे विलम्ब न करें।

2- बच्चे को खुले वाहन में लेकर कतई न जाएं।

3- कोहरे और हवा में बच्चे को कमरे से बाहर न निकालें।

 

इन लक्षणों से भी रहें सचेत-

बच्चे का दूध कम पीना, अचानक सुस्त हो जाना, सांस लेते हुए छाती में खड्डे पड़ना, मिर्गी के झटके, बुखार होना या शरीर का ठंडा पड़ना, पैरों के तलवे और हथेलियों में पीलापन आना, नाभी के आस-पास लाली या उससे मवाद आना।

 

बचाव व सतर्कता-

डाॅ. पूनम सिंह ने बताया कि नवजात शिशुओं में उक्त में से किसी भी प्रकार के लक्षण नजर आने पर तत्काल अपने नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र ले जाएं। उन्होंने कहा कि जन्म से पहले 6 महीने तक मां का दूध ही बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार होता है। बच्चे के स्वस्थ जीवन के लिए मां का दूध और उसके शरीर की गर्माईश ही सबसे उत्तम दवा है। इस विधि को अपनाकर हम नवजात शिशु मृत्यु दर को भी कम कर सकते हैं। जहां तक एक माह से ज्यादा उम्र के छोटे बच्चों की बात है तो ऐसे बच्चों के सिर सहित पूरे शरीर की हलके हाथों से की गई मालिश उसकी स्किन को मॉइश्चर से भरपूर रखती है। साथ ही ब्लड सर्कुलेशन को भी सही रखती है। इससे बच्चे को नींद भी अच्छी आती है और उसका पूरा विकास होता है। मौसम में यदि अच्छी धूप है तो मालिश के बाद कुछ देर बच्चे को हल्की धूप में जरूर ले जाएं। इसके बाद साबुन रहित गुनगुने पानी से नहला दें। मालिश के लिए नारियल, जैतून या बादाम का तेल भी चुन सकते हैं।

 

 

’’बच्चे ही देश का भविष्य बनते हैं। नवजात शिशुओं और बीमारी से ग्रस्त बच्चों का जीवन बचाना हमारी प्राथमिकताओं में शामिल है। एम्स ऋषिकेश में नवजात शिशुओं के इलाज के लिए नवजात गहन चिकित्सा इकाई (निओनेटल इंटेन्सिव केयर यूनिट) निक्कू वार्ड स्थापित है। यहां वार्मर बेड, वेंटिलेटर, पीलिया ग्रस्त शिशुओं के लिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन सुविधा, समय से पहले प्रीमैच्योर शिशुओं के इलाज की सुविधा, अल्ट्रासाउण्ड और आवश्यकता पड़ने पर नवजात बच्चों हेतु सर्जरी की सुविधा भी उपलब्ध है। नियोनेटाॅलाजी विभागाध्यक्ष डाॅक्टर श्रीपर्णा बासु के कुशल नेतृत्व में हमारे अनुभवी चिकित्सकों की टीम सतत रूप से नवजात शिशुओं के इलाज के लिए हर समय उपलब्ध है।’’

— प्रो. मीनू सिंह, निदेशक, एम्स ऋषिकेश।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Breaking News