करोड़ों खर्च करने के बाद खेल मैदान का उपयोग पार्किंग के लिए हो रहा है कितना सही? कितना गलत?
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मुनी की रेती ; करोड़ों रुपए खर्च कर पूर्णानंद मैदान को खेल मैदान बनाया गया पर, वह खेल मैदान आजकल पार्किंग में तब्दील हो चुका है, आखिर ऐसा क्यों ?
कावड़ मेला की दृष्टि से प्रशासन को कांवड़ मेले के लिए पार्किंग व्यवस्था हर हाल में करनी है इसलिए यह सही भी हो सकता है, पर क्या खेल मैदानों को ही इसके उपयोग के लिए चुना जाना चाहिए था या इसके अलावा कोई अन्य मैदान ऐसा नहीं था ,जिसका उपयोग कांवड़ मेला पार्किंग के लिए हो सकता था एक बड़ा सवाल है ?
पूर्णानंद इंटर कॉलेज के पास जो मैदान पूर्व में लोगों के बैठने और बच्चों के खेलने का मैदान है तथा जिस पर पूर्व में जिला स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता था और इसके अलावा तमाम क्रिकेट टूर्नामेंट वॉलीबॉल फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन होता था किंतु खेल मैदान के नाम आज इस फील्ड का उपयोग कावड़ मेला पार्किंग ह के रूप में हो रहा है यही नहीं इससे पूर्व कथा वह वैवाहिक कार्यक्रम के लिए भी आयोजन के लिए खेल मैदान का उपयोग हो चुका है l
अब बड़ा सवाल है की करोड़ों रुपए लगाने के बाद खेल मैदान को बार-बार नुकसान क्यों पहुंचाया जा रहा है? जब इस खेल मैदान का उपयोग पार्किंग के रूप में करना था, तो इस पर करोड़ों रुपए खर्च क्यों?
कावड़ मेला समाप्त होने के बाद क्या फिर खेल विभाग इस फील्ड पर फिर से पैसे खर्च करेगा अगर फिर से पैसा खर्च किया जाता है तो यह पैसा किसकी जेब से जा रहा है सरकार के पैसे का दुरुपयोग ना कहा जाए तो क्या कहा जाए बड़ा सवाल ? ऐसा नहीं कि प्रशासन के पास पार्किंग की और व्यवस्था है नहीं है यदि ऐसा है तो डालवाला में एक फैक्ट्री जो बंद पड़ी है उसे निजी पार्किंग के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है इस पर भी पार्किंग बनाई जा सकती थी इसे निजी पार्किंग में कैसे अंखियों उपयोग किया जा रहा है ? जबकि इस पर प्रशासन पूर्व में भी पार्किंग व्यवस्था करता था किंतु इस बार ऐसा क्या हुआ जो किसी निजी पार्किंग के रूप में इस्तेमाल करना पड़ा कुछ तो गड़बड़झाला है जो निजी पार्किंग के रूप में उपयोग हो रही है l
कहीं ऐसा तो नहीं कि पार्किंग ओं के नाम पर खेल खेला जा रहा हो ? किंतु खेल मैदान को पार्किंग बनाकर उपयोग करना कहां तक उचित है l

