नगर निकाय परिषद वनाम वन विभाग की आपसी कलह में तीसरा पक्ष जनता को असामाजिक से सम्बोधित करने पर हंगामा बढ़ने के आसार
1 min readमुनि की रेती, नगर क्षेत्र में आजकल सार्वजनिक प्रयोग स्थल पर ताला जड़ देना स्थानीय जनता को नागवार लगा तो उन्होंने आक्रोश जताकर पुतला दहन कर सरकार और वन विभाग के खिलाफ नारेबाजी कर तत्काल सार्वजनिक स्थल पर यथा स्थिति बनाये रखने और इसका संचालन नगर पालिका परिषद से कराए जाने की मांग की है। स्थानीय जनता को इसका विरोध करने पर असामाजिक तत्व कह कर सम्बोधित करना कुंठित मानसिकता को दर्शा रहा है जिसकी सर्वत्र निंदा हो रही है।
जनता का इस सम्बंध में व्यापक रोष लगातार बढ़ता दिख रहा है और फिर सवाल ये है कि सिचाई विभाग और वन विभाग की दखलंदाजी जबकि इस सार्वजनिक स्थल की सुरक्षा और स्वच्छता का जिम्मा नगर पालिका पूर्व से करती आ रही है। ऐसा अचानक क्या हो गया कि इसमें प्रदेश के वन मंत्री सहित क्षेत्र के विधायक की बिना जानकारी के ताला जड़ देना जनता को आक्रोशित कर रहा है। आखिर कौन है वो जो नगर में ऐसा कृत्य कर माहौल बिगाड़ने ओर पालिका परिषद के कार्य को प्रभावित कर छवि बिगाड़ने की कोशिश करता दिख रहा है।
मामला तब ओर गम्भीर बनता दिख रहा है कि इस प्रकरण में लगातार प्रेस वार्ता का दौर कर हर कोई इस मामले को सुलझाने के बजाय बिगाड़ने का कार्य कर रहा है।इस कड़ी में सबसे पहले नगर पालिका परिषद ने मीडिया के माध्यम से अपना पक्ष रखकर इस सार्वजनिक स्थल पर ताला जड़ने की कार्यवाही का विरोध कर जल्द इस मामले को सुलझाने की वकालत की।इसके बाद क्षेत्र की जनता को इस बारे मे सूचना मिलने पर की गई क्रिया पर प्रतिक्रिया कर व्यापक रोष प्रकट किया गया। कल इस बारे में माँ गङ्गा रामलीला समिति जिसको रामलीला करने की स्वीकृति चाहने के बाबजूद नही मिल पाई और दूसरी समिति माँ भद्रकाली रामलीला समिति को स्वीकृति दे दी गयी।झगड़े की असल जड़ यँहा से शुरू हुई ओर आनन फानन में ये ताला जड़ दिया गया और इसमें वन विभाग की भूमिका को इंगित किया जा रहा है।कल प्रेस से मिलिये कार्यक्रम में माँ गङ्गा रामलीला के महासचिव ने विरोध करने वाले जनता को असामाजिक शब्दो से सम्बोधन कर सफाई दी लेकिन वो ये भूल गए कि वो खुद इसमें उलझ गए है और इस स्थल को गरीब लोगों को जो वैडिंग प्वाइंट का पैसा नही दे सकते है उन्हें फ्री में ग्राउण्ड देने की बात सार्वजनिक की है।जिससे उनके प्रति की क्या वो वन मंत्री है अथवा वन विभाग में उच्चाधिकारी है जो उन्होंने मीडिया के सन्मुख ये सब घोषणा की है।इससे जनता में नाराजगी देखने को मिली है।रामलीला समिति को पार्टी बनने से बचना चाहिए था।आज पालिका के पूर्व अध्यक्ष को भी अपना पक्ष रखना पड़ा और उन्होंने इस प्रकरण पर विधायक वन मंत्री को घेरने पर आपत्ति दर्ज कर उन्हें इस मामले से दूर रखें जाने का निवेदन किया है। अब सवाल ये है कि इस स्थल को सार्वजनिक रूप से प्रयोग होने देना कौन नही चाहता है।जब विधायक मन्त्री को इस मामले की जानकारी ही नही तो फिर इस प्रकार की कार्यवाही के लिये किसको दोषी ठहराया जाना उचित होगा।